Friday, January 1, 2010

दिल्ली -पंजाब में काम सीखे हैं





आप सोच रहे होंगे कि यह महिला (शायद विक्टोरिया) घूंघट लगाए आखिर क्या कहना चाहती है ?


जी हाँ , नवरत्न के ऊपर स्थापित इस मूर्ति की जिस ख़ूबसूरती से मैं आपको परिचित करा रहा हूँ .....इससे पहले शायद आपने इसे इस तरह नहीं देखा होगा । आप पिछले सालों में कई बार श्रीनगर की यात्रा कर चुके होंगे ...लेकिन यह तस्वीर बिलकुल नवीन है ।

वर्षों से अपने रंग -रोगन का इंतज़ार कर रहा नरत्तन अब चमक रहा है । सिर्फ उसपर लगी प्रतिमाओं को ही रंगाया-ढोराया नहीं गया है ...बल्कि पूरे किले को चमकाया जा चुका है । रंगाई हो जाने के ठीक बाद मैं श्रीनगर पहुंचा तो ड्योढी के अन्दर सफ़ेद -सफ़ेद रंग को सर्वत्र देखकर मन चहक उठा । तपाक से मन कुलांचे भरने लगा कि किसी ऐसे व्यक्ति से जल्दी से मुलाक़ात हो ....जिसने इसके पुराने चमकते रंग रूप का रसास्वादन किया हो।

इलाके के दस-बारह लोगों (जिनका जन्म 1920 के दशक में हुआ है ,और अब तक जीवित हैं ) से छोटी -२ जानकारियाँ बटोरीं ....उन सूचनाओं का सहारा लेते हुए दादाजी (कुमार दिव्यानंद सिंह ) से बातचीत शुरू की !!

मन को तब जाकर शान्ति मिली । रही शीर्षक में लिखे गए ''दिल्ली -पंजाब में काम सीखे हैं '' वाली बात ! नवरत्न को white cement से ढोरने वाले और इतने खूबसूरत दृश्य को फोकल पॉइंट पर दुबारा दृष्टिगोचर करने वाले मजदूर से हुई मेरी बातचीत के दौरान मेरे द्वारा यह पूछने पर कि इतने बड़े बिल्डिंग की पुताई करने में क्या आपको कोई ख़ास दिक्कत नहीं हुई(?) बड़े ही रौब ज़माने के अंदाज़ में उसने मुझे ये ज़वाब दिया था ।

2 comments:

  1. 'पढि लीखि जे नंहि बजै छथि निज मातृभाषा मैथिली,
    मोन होइछ जे हुनकर दुनू कान पकडि क़' अंइठ दी ।" कवि स्व. सीताराम झा। हमरा चि. चिन्मयानन्दक जीवन जीयैक सूत्र वाक्ये स' असहमति अछि जे हुनका कोनो चीज स' परहेज नहि छनि। माने कुकृत्ति आ सुकृति मे कोनो भेद नंहि? दोसर, हुनका अपन लक्ष्य स्पष्ट क' लेबाक चाही जे ओ विरुदावली लिखैवला लेखक बनै लए जा रहल छथि कि एक्कैसम शताब्दीक प्रखर पत्रकार ? ओना हिन्दी अंग्रेजी लिखैवला पत्रकार गंडा_गाही छै, मैथिली पत्रकारिताक मैदान खाली छैक। ताहि ले अपन चारू कातक परिवेश देख' पडतै। हुनका इहो तय क' लेबाक चाही जे हुनकर पाठक के छनि...दस टा हुनकर देयाद_बाद, कि कम स' कम ओ इलाका,मिथिला कि बिहार ? ओ हिन्दी नीक लिख सकै छथि मुदा हुनका अपन कुलाभिमानक मिथ्या महान बोधक जाल स' निकल' पडतनि।साकेतानन्द।

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  2. Good,you did not tell me earlier about this blog.A good start.The new photo of Narattan is really grand.

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