Wednesday, December 15, 2010

बनैली का मंदिर ;The oldest monument of Purnea district !!

लगभग एक साल बाद परिवार पर कुछ लिखने बैठा हूं!


आज बनैली-परिवार की बची हुई सबसे पुरानी याद से आपका साक्षात्कार करवा रहा हूं! भले ही हम अलग-अलग ड्योढियों के भीतर अलग-अलग माहौल में पल-बढ के .....विभिन्न जगहों पर अपना नाम स्थापित कर चुके हैं , या फिर किसी ना किसी तरह अपना नाम स्थापित करने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं ; लेकिन इन सब नए परिचयों से ज्यादा महत्वपूर्ण परिचय है - "हमारा बनैली परिवार से जुडाव"! सिर्फ़ बनैली-परिवार ही नहीं , बल्कि यहां पर राजा दुलार चौधरी का नाम लेना आवश्यक है! राजा दुलार की राज्य-विस्तार की नीति, उनके पराक्रम-शौर्य , कुशल स्टेट्समैन वाले उनके अंदर विद्यमान गुण, इत्यादि के बारे में यहां अलग से लिखना जरूरी नहीं है! डाक्टर फ़्रान्सिस बुकानन से लेकर तत्कालीन तथा वर्त्तमान मिथिला के विद्वानों के दस्तावेजी साक्ष्य इनके व्यक्तित्व तथा जीवन-दर्शन से हमारा परिचय भली-भांति करवाते हैं! इन्हीं राजा दुलार चौधरी द्वारा अपने समय में कई मंदिर बनवाए गए.....कई भवन बनवाए गये! तब, उस समय श्रीनगर / चम्पानगर-रामनगर-गढबनैली-सुल्तानगंज में, अलग-अलग ड्योढियों की कल्पना नहीं की गयी थी ! संयुक्त बनैली अपने सम्पन्नता की गाथा लिख रहा था ! उस समय के आंचलिक स्तर की अधिकतर बडी राजनैतिक-कूटनीतिक गतिविधियां बनैली से ही संचालित होती थीं ! तत्कालीन बनैली का अपना राजप्रासाद था ! सुसज्जित नगर के रूप में बनैली 'राजधानी' के रूप में जानी जाती थी! हम सब किसी ना किसी ड्योढी के अहाते और उसके लाव-लश्कर से परिचित हैं! गोसाउन-घर, मण्डप,ठाकुरबाडी, दुर्गा-मन्दिर, शिव-मन्दिर, काली-मन्दिर, तालाब , दरबार....और भी ना जाने कितने ही धार्मिक-सामाजिक तानों-बानों की चीज़ें! बतौर एक समृद्ध राज्य की राजधानी, बनैली भी अपने समय में इन सारी चीज़ों से सुसज्जित थी!

कालक्रम में परिस्थिति एवं नियति की बल्लेबाजी कुछ इस तरह रही ...कि उपरोक्तलीखित सारी चीज़ें इतिहास का हिस्सा बन गयी!राजा दुलार के सारे वंशज अपनी-अपनी पृथक राजधानियों के निर्माण में लग गये,जिसका परिणाम आज श्रीनगर /चम्पानगर-रामनगर-गढबनैली-सुल्तानगंज की ड्योढियां हैं ! इतिहास को पढने पर हम इसे और ज्यादा समझ सकेंगे !
लेकिन जिस मूल बात को लेकर मैं ब्लॉग/फ़ेसबुक/पत्र के माध्यम से आपसे मुखातिब हूं , वह इसी इतिहास के संरक्षण का एक प्रयास है! राजा दुलार द्वारा बनाया गया एक मंदिर आज भी अपने स्थान पर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में ही सही , खडा है! पिछले कई दशकों से हमलोग यहां आकर अपने पूर्वजों को याद करते हैं - तत्कालीन स्थापत्य कला के नमूने को देखते हैं- ढांचे की कलात्मकता की प्रशंसा करते हैं .....और फिर अपने दोपहिया-चारपहिया वाहनों से धूल उडाते हुए अपने नए बसाए आशियाने की ओर निकल पडते हैं(मैं स्वयं ऐसा करता रहा हूं)! परिवार के स्वर्णिम अतीत की नोस्टाल्जिया किसे पसन्द नहीं!













लेकिन हालात अब वैसे नहीं हैं




ऊपर की तस्वीरें बतलातीं हैं कि एकदम से बदहाली के शिकार हुए इस monument के हालात कैसे बदले जा रहे हैं ! अभी हाल में मैं जब वहाँ गया ......तो कई ऐसी चीज़ें देखने को मिली,जिससे मन को बड़ी तसल्ली मिली! वहाँ मंदिर के रेनोवेशन का काम जारी है ! एक्सकेवेशन के उपरांत कई महत्वपूर्ण चीज़ों का पता चला है,जिससे कि श्रीनगर के देविघरा में राजा श्रीनन्द सिंह द्वारा स्थापित''पीढी'' के मूलस्थान का अंदाजा लगाने में सहायता मिलती है! सबसे अच्छी और प्रेरणापद बात तो यह कि इस पूरे कार्य में बनैली के आम ग्रामीणों का भरपूर सहयोग मिल रहा है ! लोग खुलकर श्रमदान कर रहे हैं ! गरीब ग्रामीण , जो कि दैनिक मज़दूरी से ही अपनी रोजी चलाते हैं....वे तो श्रमदान दे ही रहे हैं ; संपन्न परिवार के लोग भी स्वेच्छा से इस के जीर्णोद्धार में लग कर अपनी भागीदारी दर्ज करवा रहे हैं ! स्थानीय मुखिया मुस्तैदी से इस पूरे काम की समीक्षा में व्यस्त दिखे!


वहाँ पर कई अन्य महत्वपूर्ण चीज़ों से भी मेरा परिचय हुआ ! मंदिर परिसर में पूरे बनैली परिवार के वंश-वृक्ष को साफ लिखवाया गया है, जिससे इसकी ऐतिहासिकता का प्रत्यक्ष प्रमाण दृष्टिगोचर होता है!

बनैली परिवार के इतिहास पर शोध करने वाले, ''बनैली - रूट्स टू राज'' के लेखक , कुमार गिरिजानंद सिंह(रमण जी) की किताब से हम सभी परिचित हैं ! उनके तथा श्री उदयानंद सिंह (बिहारी जी )के कुशल निर्देशन एवं गढ़बनैली के दीपकनंदन सिंह के देख-रेख में सारा कार्य प्रगति पर है !वैसे तो इस पूरे कार्य की जिम्मेदारी हम सभी बनैली परिवारवालों की है .......लेकिन हममें से कौन इसमें कैसा योगदान करता है , यह व्यक्तिगत स्तर पर निर्भर करता है ! वहाँ साइट पर मौजूद कुमार गिरिजानंद जी से हुई मेरी बातचीत से मुझे पता चला कि इस पावन-कार्य में परिवार के कोई भी सदस्य ,अपनी इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार योगदान दे सकते हैं ! मेरे द्वारा यह पूछने पर कि , ''क्या आपको इसमें सहयोग मिल रहा है ?'' उनका जवाब था ......कि लगभग सभी ड्योढ़ियों से सहयोग मिला है , तथा कईयों से हुई बातचीत के आधार पर मदद अपेक्षित है !
अगर इस स्थान का ठीक से विकास किया जाय , तो ऐतिहासिकता के नज़रिए से पर्यटन के विकास की संभावनाएं काफी प्रबल हैं ! इस स्थान का तरीके से एक्सकेवेशन अभी तक नहीं हुआ है ! सरकार को भी इस पर संज्ञान लेने की आवश्यकता है ! खैर , भूगर्भ में क्या है ......इस पर चर्चा कभी बाद में ! पहले कुशलपूर्वक इस मंदिर को सहेज लिया जाय !
एक बात और , लेखनी के माध्यम से मुझे बस पत्रकारिता भर ही नहीं करनी है इस मसले में ! मंदिर जीर्णोद्धार (जिले के सबसे पुराने monument को बचाने में ) में सहयोग की भी अपेक्षा कर रहा हूँ ! यदि कोई भी इच्छुक हों , तो जरूर
संपर्क करें !