Tuesday, October 20, 2009

तस्वीरों के सहारे यादों को ताज़ा कीजिये!!!


DEVIGHARA, इस बार देविघरा का रूप और रंग एकदम से बदला हुआ था । श्रीनगर का देविघरा इससे पहले इतना ज्यादा रंगीन और सम्यक मैंने पहले कभी नहीं देखा।


STATUE OF DURGA JEE, दुर्गाजी की प्रतिमा....मूर्तिकारों को अभी और मेहनत करने की जरूरत है। लेकिन फ़िर भी तारीफ़ के काबिल !!
VISARJANA, विसर्जन के बाद मूर्ति को अब जल में प्रवाहित किया जायगा;इनके आभूषणों को उतार कर अगले साल के लिए रखना भी एक जिम्मेदारी भरा कार्य है!


BALI-PRADAAN, महानवमी का महाकार्य ; बलिप्रदानकर्ता जीबछ ठाकुर को मालूम नहीं कि अब तक कितने बकरों की बलि हो चुकी है! पूछने पर कहते हैं --जय माँ काली..जय माँ दुर्गे !!


ON PUJA DUTY...देवानंद सिंह,संजीवानंद सिंह,विभूति ,साथ में अनिल विश्वास(खोखा)। मन्दिर में इनका मौजूद होना यहाँ की व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने के लिए काफी जरूरी है । बारी -बारी से ड्योढी के सभी लोग आकर इस कार्य में अपना योगदान देते हैं । ग्रामीणों की ओर से भी कोई ना कोई उनका प्रतिनिधित्व करने को होता है(खोखा से अनिल यहाँ पर खोखा वासियों के प्रतिनिधि के रूप में हैं)!!

BHUTTO,जुल्फिकार अली भुट्टो ; नहीं....बल्कि भुट्टो साह। चाहे भगवती को नाना प्रकार के मिष्टान्न के भोग लगाने हैं या फ़िर आज काला जामुन /गरम -गरम गुलाब जामुन खाने की इच्छा है,आपकी पहली पसंद पर इसी व्यक्ति का अधिपत्य है । आख़िर श्रीनगर ड्योढी का खानदानी हलवाई रहा है इसका पूरा परिवार ।

ZALEBEE, इसके बारे में लिख कर बतलाने से इस स्वनामधन्य वस्तु की तौहीन होगी । हाँ ,मेले में लाल-हरे -पीले परिधानों में गांवों से आयी महिलाओं की साडी की खूंट में ज़लेबी से भरी पन्नी(पोलीबैग )जब बंधी होती है तो इन दोनों के रंग में फर्क करना बिल्कुल असंभव होता है । "ज़लेबी की लोकप्रियता के पीछे कारण" विषय पर किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि आम जनमानस में ज़लेबी अपने स्वाद को लेकर तो पसंद की ही जाती है लेकिन उससे भी ज्यादा यह अपने ठेठ सिंदूरी / केसरिया लाल रंग के लिए मशहूर है ।
आपको मालूम है ही कि हरेक दशहरे में राजा श्रीनन्द सिंह की स्मृति में एक क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता है । नीचे तस्वीरें प्रस्तुत हैं ।