Monday, September 17, 2012
गहरी आस्था के साथ लोगों का मानना है कि "अगर आप किसी काम में हाथ लगाते हैं , और वह काम बहुजनहिताय है...तो जरूर पूरा होता है"! इस प्राचीन और वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण माने जाने वाले शिव-मंदिर की जीर्णोद्धार प्रक्रिया प्रगति पर है ...ऐसे में चूंकि यह बहुजनहिताय है , इसका पूरा होना तय लग रहा है !
कुछ साल पहले तक इस मंदिर के बगल की पक्की सड़क से गुजरते हुए आज के इसके इस रूप की कल्पना भी कोई नहीं कर सकता था!
कोई सोच भी नहीं सकता था कि इसकी खूबसूरती इसे वापस मिल सकेगी ! लेकिन आज नज़ारा कुछ और ही बयान करता है ! जैसे -जैसे मज़दूरों के हाथ इसमें लगते जा रहे हैं ...कला और तत्कालीन शिल्प का ख़ूबसूरत दृश्य आँखों के सामने आता जा रहा है ! अपनी जान पर खेलकर इस मंदिर की मरम्मत में जुटे मज़दूरों का ज़ज्बा भी देखते ही बनता है !
सन १९८७ में आयी भयंकर बाढ़ तक यहाँ दो गगनचुम्बी मंदिर थे, दोनों महादेव के ही! इन्हें भारतीय सेना के नक़्शे में पूर्णिया के कुछ सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में से एक होने का गौरव प्राप्त है ! ट्विन टेम्पल (twin temple) के नाम से तो यह अभी भी सेना के नक़्शे में मौजूद है , लेकिन ८७ की उफनाई महानंदा नदी ने एक को लील लिया! सन ८७ में जिस रात वह मंदिर गिरा ...कहते हैं कि इलाके के लोगों के लिए उसके गिरने की आवाज़ अब तक की सुनी हुई सबसे जोरदार आवाज़ थी ! अब उस स्थल पर बचे भग्नावशेष ही उसकी ऐतिहासिकता के साक्ष्य हैं ! एक जो बचा , वह उससे थोड़ा सा छोटा है ...उसी की बात शब्दों के जरिये करने अभी आपसे मुखातिब हूँ ! हांलांकि इन दोनों मंदिरों में पूजन का कार्य सन १९३४ के भूकंप के बाद से ही बन्द करवा दिया गया था ( आर्किटेक्टों और इंजीनियरों ने भूकंप के बाद आयी दरारों और उसके खतरों के मद्देनज़र ऐसा कहा होगा)! लेकिन समय पर अगर संसाधनों का उपयोग करके दोनों की मरम्मती करा ली जाती तो शायद आज "ट्विन टेम्पल" ट्विन ही रहता ! चलिए , १९८७ की घटना एक प्राकृतिक आपदा थी ! किसी को भी इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है !
लेकिन इस अनुपम सुन्दर और भव्य देवस्थली (लोगों के बीच "मंठ" नाम से लोकप्रिय) को जितनी बेरूखी झेलनी पडी है , छुपी हुई नहीं है ! मंदिर का सौन्दर्य तार -तार होता गया , और हम बस देखते रहे ! वट ,पीपल ,सांखड़ जैसे कई वृक्ष एकीकृत होते गए और धीरे -धीरे बढ़कर मंदिर के मस्तक से भी २० फीट ऊपर पहुँच गए! इन वृक्षों के जड़ों ने इस मंदिर को अपने पाश में बाँध कर इनकी अब तक रक्षा तो की ही , बहुत क्षति भी पहुचाया ! इस तरह से महादेव शायद अपने सर्वाधिक प्रिय परिवेश में चले गए थे जहां विषधरों का बसेरा था और धतूर -भांग -गांजे के जंगल मंदिर के भीतर उग आये थे ! लेकिन मंदिर की हालत कुछ ऐसी हो गई थी कि इसे अगर उस वक्त उसी हाल में छोड़ दिया जाता ...तो शायद समय इसे निगल जाता! तरह- तरह के वृक्ष इस मंदिर पर उग आये...और हमने उसकी ऊँची मुंडेर को देखकर इसके निर्माण करवाने वाले अपने पूर्वजों का नाम लेकर बस दंभ ही तो भरा है ..किया क्या ? अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए किसी तरह एक उपाय भर निकाला ! मंदिर के बगल में पहले एक कच्चा/फूस का घर बनाया , जिसे बाद में इंदिरा आवासनुमा एक पक्के के घर में परिवर्तित कर दिया गया ! उसी में सभी शिवलिंगों , पार्वती की मूर्तियों , नंदी की मूर्तियों , गणेश ,भैरव की संगमरमरी प्रतिमाओं को स्थापित भर कर दिया ! कुछ शिवलिंगों को पूर्णिया के भट्ठा बाज़ार में बन रहे पुलिस ठाकुरबाड़ी में सप्रेम भेंट दे दिया और बाकी जो बचे उनकी चोरी की घटनाओं को पुलिस रिकार्ड तक में दर्ज करवाने को लेकर कोई पहल नहीं की !
अब हालत यह है कि मंदिर में आज से पांच साल पहले कितनी प्रतिमाएं थीं , और आज कितनी प्रतिमाएं बची हैं ...इसका हिसाब भी हम ठीक से नहीं लगा सकते ! प्रबंधन को आप किसी के सर पर नहीं लाद सकते हैं , इसके लिए हरेक को अपने स्तर पर प्रयास करना पड़ता है ! खैर, ये सब बात रहे अभी ! अभी मंदिर जीर्णोद्धार पर फोकस करना जरूरी है !
बनैली (ज्वाइंट बनैली) के एकमात्र बचे काली मंदिर को बचाने और जीर्णोद्धार करने के लिए जाने जाने वाले , बनैली : रूट्स टू राज के लेखक और परिवार के एक बहुत ही वरिष्ठ अंग श्री गिरिजानंद सिंह जी की कोशिशें रंग ला रही है ! बनैली परिवार का इतिहास लिखने के बाद से उनकी हरेक गतिविधि में परिवार की बनायी हुई चीज़ों की ऐतिहासिकता को बचाने की कोशिश रहती है ! इस मंदिर के जीर्णोद्धार का बीड़ा भी आपने ही उठाया है ! पूरे परिवार को एक प्लेटफार्म पर लाकर आपने ही इस कार्य का श्रीगणेश करवाया ! आपका ज़ज्बा देखकर लगता है कि किसी भी कार्य को करने के लिए सिर्फ रूपयों की आवश्यकता नहीं होती , जरूरत होती है ...विषम से विषम परिस्थितियों में भी धैर्य की ! पूरे परिवार द्वारा मिले नैतिक समर्थन और कई लोगों से मिले आर्थिक मदद (हालांकि इसे मदद नहीं कहा जा सकता) की खातिर पिछले साल मार्च -अप्रैल में यह काम शुरू हुआ और अभी तक चल रहा है ! बीच में कई बार रूपयों की कमी के कारण काम रुका भी ..लेकिन फिर से काम जारी है ! इस मंदिर के जीर्णोद्धार में पहले तो यही सोचा गया था कि हम पूरे बनैली-परिवार को , उससे सम्बंधित परिवारों को आर्थिक मदद के लिए प्रेरित करेंगे ! लेकिन बाद में इतने मात्र से संभव होते ना देखकर यह निर्णय लिया गया ..कि जो कोई स्वेच्छा से सहयोग करना चाहे , कर सकता है ! अभी भी मंदिर में जिन्होंने सहयोग नहीं प्रदान किया है ...उनका स्वागत है ! क्योंकि कहते हैं ना कि "अगर आप किसी काम में हाथ लगाते हैं , और वह काम बहुजनहिताय है...तो जरूर पूरा होता है"!
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